आख़िर कैसे प्लेन में अफगानी बच्चा छिपकर आ गया दिल्ली? यहां जाने

आख़िर कैसे प्लेन में अफगानी बच्चा छिपकर आ गया दिल्ली? यहां जाने

वेब-डेस्क :- भारत ही नहीं बल्कि, दुनिया भर के देशों से हर रोज एक बड़ी संख्या में हवाई जहाज उड़ान भरते हैं और अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं। पर बीते दिनों उस वक्त हर कोई हैरान रह गया, जह एक बच्चा लैंडिंग गियर में छिपकर भारत आ गया। दरअसल, काबुल से दिल्ली आ रही एक फ्लाइट के लैंडिंग गियर में कंपार्टमेंट 13 साल का अफगानी बच्चा छिपकर दिल्ली पहुंच गया।

इस मामले ने न सिर्फ एयरपोर्ट से लेकर यात्रियों की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े कर दिए बल्कि, ये भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि भला ये बच्चा लैंडिंग गियर कंपार्टमेंट में छिपकर कैसे जिंदा भारत आ गया? जी हां, क्योंकि लैंडिंग गियर कोई आम जगह नहीं होती। जहां पर आप आराम से बैठकर सफर कर सकें। तो चलिए जानते हैं इस बारे में…

पहले समझिए लैंडिंग गियर कंपार्टमेंट होता कैसा है
जैसा कि इसके नाम से ही समझा जा सकता है कि ये एक तरह का डिब्बा होता है। ये इतना मजबूत होता है कि इसमें लगे व्हील पूरे जहाज के भार को संभालते हैं। सात ही इसमें एक हाइड्रोलिक सिस्टम भी लगा होता है और इसी की वजह से जब पायलट एक बटन दबाता है तो हवाई जहाज के टायर अंदर-बाहर आ जाते हैं।

लैंडिंग के समय पायलट टायर्स को खोल देता है और टेकऑफ के तुरंत बाद ही इन पहियों को बंद कर दिया जाता है। इस लैंडिंग गियर कंपार्टमेंट में किसी भी तरह की कोई सीट नहीं होती और न ही कोई खिड़की होती है। ये जगह पूरी अंधेरे वाली होती है।

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अब तक इतने लोग गंवा चुके हैं जान
लैंडिंग गियर में छिपकर सफर करने वाले 98 लोगों की जान गई (ये मौत का आंकड़ा उन लोगों का है जो एयरपोर्ट पर विमान के लैंडिंग से या तो पहले गिरे या फिर लैंडिंग गियर कंपार्टमेंट के अंदर मरे पाए गए) और सिर्फ 28 लोग ही बच सकें। ऐसे में 13 साल के बच्चे का लैंडिंग गियर में छिपकर जिंदा भारत आ जाना किसी करिश्मे से कम नहीं माना जा रहा।

जैसे, वर्ष 1996 में भारतीय प्रदीप सैनी और उनके भाई विजय सैनी लैंडिंग गियर कंपार्टमेंट में छिपकर लंदन गए। 10 घंटे का सफर तय करने के बाद ये दोनों लंदन तो पहुंचे, लेकिन हीथ्रो एयरपोर्ट के पास विजन विमान से गिर गया और उसकी मौत हो गई।

तापमान माइनस (-) में
जान लीजिए कि जब विमान काफी ऊंचाई पर जाता है तो यहां पर तापमान -40°C से -60°C तक हो जाता है। ऐसे में अगर कोई शख्स लैंडिंग गियर कंपार्टमंट में बैठा है, तो इतने तापमान को वो झेल नहीं पाता है उसकी मौत हो सकती है जिसकी संभावना काफी अधिक होती है। इसे आप ऐसे समझिए कि अब तक उन्हीं लोगों की जान बची है, जिन्होंने कम दूरी का सफर तय किया है।

ऑक्सीजन हो जाती है जीरो
जैसा कि आपको पिछली स्लाइड्स मे बताया कि आसमान में तापमान -40°C से -60°C तक हो जाता है जिसके कारण लैंडिंग गियर में जमाने और कपाने वाली ठंड होती है। वहीं, इसमें अंदर ऑक्सीजन न होने से पहले व्यक्ति को बेहोशी छाती है और फिर हवा का दबाव कम होने से मौत हो सकती है और मौत की संभावना सबसे अधिक होती है।

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