नवरात्रि में छत्तीसगढ़ के 36 माताओं का दर्शन और आराधना

नवरात्रि में छत्तीसगढ़ के 36 माताओं का दर्शन और आराधना

छत्तीसगढ़ :-  चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर हमारे साथ छत्तीसगढ़ की 36 माताओं का दर्शन कीजिए और उनकी महिमा  को जानें और उनकी दिव्य कृपा प्राप्त करें

आज पहला दिन चैत्र नवरात्रि का महत्व और 36 माताओं की अवधारणा को जानते हैं

  • चैत्र नवरात्रि का महत्व और परंपरा
  • 36 माताओं का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व।
  • छत्तीसगढ़ में 36 माताओं की परंपरा और मान्यता।

 

1. चैत्र नवरात्रि का महत्व और परंपरा

चैत्र नवरात्रि का आरंभ हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी और इसी दिन भगवान राम का जन्म हुआ, जिसे राम नवमी के रूप में मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। यहां 36 माताओं की पूजा का प्रचलन है, जो विभिन्न रूपों में छत्तीसगढ़ की भूमि की रक्षा करती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। 36 माताओं का संबंध छत्तीसगढ़ की शक्ति पीठों से भी जोड़ा जाता है। ये माताएं दंतेवाड़ा से लेकर रतनपुर, बस्तर, अंबिकापुर और खैरागढ़ तक अलग-अलग स्थानों पर विराजमान हैं और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं।

2. छत्तीसगढ़ की 36 माताओं का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

छत्तीसगढ़ का नाम ही “36 गढ़ों” से लिया गया है, जो यहां की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाता है।

36 माताएं छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, आस्था और परंपरा का हिस्सा हैं।

इन्हें देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के रूप में पूजा जाता है और नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से इनकी आराधना की जाती है।

ये माताएं शक्ति, ऊर्जा, ज्ञान और रक्षा का प्रतीक मानी जाती हैं, जो भक्तों को संकटों से उबारती हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।

 

धार्मिक महत्व:

1. शक्ति की उपासना:
36 माताओं को देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों का अवतार माना जाता है। इनकी उपासना से भक्तों को शक्ति, साहस और आत्मविश्वास मिलता है।

2. संकट हरण करने वाली देवी:
लोक मान्यता के अनुसार, ये माताएं अपने भक्तों को आपदाओं और संकटों से रक्षा करती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

3. नवरात्रि में विशेष पूजन:
चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान 36 माताओं की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

4. लोक आस्था से जुड़ी परंपराएं:
ग्रामीण अंचलों में इनके प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति देखी जाती है।

 

सांस्कृतिक महत्व:

1. लोक मान्यताओं और परंपराओं का हिस्सा:
36 माताएं छत्तीसगढ़ के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने से गहराई से जुड़ी हुई हैं।

2. ग्रामीण समाज में विश्वास का प्रतीक:
गांवों में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, समृद्धि और सुखद जीवन के लिए 36 माताओं की पूजा की जाती है।

3. पारंपरिक लोक संस्कृति का हिस्सा:
इन माताओं से जुड़े अनुष्ठान, व्रत, त्योहार और मेले छत्तीसगढ़ की संस्कृति को समृद्ध करते हैं।

4. जनमानस की श्रद्धा और विश्वास:
36 माताओं से जुड़ी कथाएं और गीत पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाए जाते हैं, जो लोक परंपरा का हिस्सा हैं

 

3. छत्तीसगढ़ में 36 माताओं की अवधारणा और लोक मान्यता

छत्तीसगढ़ में 36 माताओं की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इन माताओं को शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जो लोक जीवन से गहराई से जुड़ी हुई हैं। गांवों और कस्बों में 36 माताओं की कथाएं, लोकगीत और लोक मान्यताओं के माध्यम से उनकी आराधना की जाती है। छत्तीसगढ़ का नाम ही “36 गढ़ों” से लिया गया है, जो विभिन्न देवी-देवताओं और राजघरानों से जुड़े स्थानों को दर्शाता है।

माताओं का विविध स्वरूप:

36 माताएं विभिन्न रूपों में शक्ति, ज्ञान, समृद्धि, रक्षा और स्वास्थ्य की प्रतीक मानी जाती हैं।

इन्हें देवी दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती और अन्य रूपों में प्रतिष्ठित किया जाता है।

36 माताओं का स्वरूप

1. महामाया माता

2. शीतला माता

3. विंध्यवासिनी माता

4. चंडी माता

5. खैरमाता

6. दुर्गा माता

7. काली माता

8. लक्ष्मी माता

9. गौरी माता

10. जगदंबा माता

11. मातंगिनी माता

12. गंगा माता

13. भद्रकाली माता

14. नागेश्वरी माता

15. संतोषी माता

16. चामुंडा माता

17. सरस्वती माता

18. बमलेश्वरी माता

19. रत्नेश्वरी माता

20. महालक्ष्मी माता

21. हिंगलाज माता

22. कामाक्षी माता

23. तारिणी माता

24. भवानी माता

25. अंबिका माता

26. दुर्गेश्वरी माता

27. जगदंबा माता

28. कंकाली माता

29. वैष्णो माता

30. अनसूया माता

31. मनसा देवी

32. नर्मदा माता

33. दुर्गावती माता

34. रत्नेश्वरी माता

35. महामाया माता (दुर्ग)

36. बस्तर की दंतेश्वरी माता

 

36 माताओं की धार्मिक मान्यता

1. संकट निवारण और रक्षा:
लोक मान्यता के अनुसार, 36 माताएं अपने भक्तों की संकटों से रक्षा करती हैं और उन्हें समृद्धि प्रदान करती हैं।

2. महामारी और बीमारियों से बचाव:
प्राचीन समय में जब महामारी फैलती थी, तो ग्रामीण समाज में 36 माताओं की विशेष पूजा कर रोग निवारण और शांति की कामना की जाती थी।

3. समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक:
इन माताओं को गांव, परिवार और समाज में सुख-शांति बनाए रखने वाली देवी माना जाता है।

4. नवजात और गर्भवती महिलाओं की रक्षा:
गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों की सुरक्षा और स्वस्थ विकास के लिए 36 माताओं की विशेष पूजा का विधान है।

लोक परंपराएं और अनुष्ठान

1. नवरात्रि में विशेष पूजन:
चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान 36 माताओं की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है।

2. जागरण और भजन-कीर्तन:
गांवों में माता जागरण, भजन और कीर्तन आयोजित किए जाते हैं।

3. “माता चौरा” की स्थापना:
गांवों में माता चौरा (मंदिर या स्थान) की स्थापना होती है, जहां महिलाएं जाकर पूजा-अर्चना करती हैं।

4. संकट के समय हवन और अनुष्ठान:
महामारी या किसी प्राकृतिक आपदा के समय 36 माताओं की विशेष पूजा और हवन करके गांव और परिवार की रक्षा की प्रार्थना की जाती है।

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लोककथाओं और जनविश्वास में 36 माताएं

लोक कथाओं और जनश्रुतियों में 36 माताओं का वर्णन गांवों की रक्षा करने वाली अदृश्य शक्ति के रूप में किया जाता है।

लोक गीतों में माताओं का आह्वान संकटों को टालने और समृद्धि लाने के लिए किया जाता है।

महिलाओं और बच्चों के संरक्षण की कहानियां पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती हैं।

 

36 माताओं की पूजा से प्राप्त होने वाले फल

1. संकटों से मुक्ति:
माताओं की पूजा करने से जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है।

2. परिवार में सुख-शांति:
माता की कृपा से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

3. स्वास्थ्य और सुरक्षा:
माताओं की कृपा से बच्चों और गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा होती है।

4. भय का नाश:
माताओं की आराधना करने से सभी प्रकार के भय और बाधाओं का नाश होता है।

 

 36 माताओं की लोक परंपरा और श्रद्धा का संदेश

“छत्तीसगढ़ की 36 माताएं न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि लोक संस्कृति और परंपरा का जीवंत उदाहरण भी हैं।”

नवरात्रि में इन माताओं का आह्वान समाज में एकता, शक्ति और समृद्धि का संदेश देता है।

भक्तों की श्रद्धा और भक्ति के साथ 36 माताओं का पूजन लोक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखता है।

 

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