Gandhi Jayanti: उत्तराखंड से था खास लगाव,किसे और क्यों कहा भारत का स्विटजरलैंड,दिलचस्प हैं यादें

Gandhi Jayanti: उत्तराखंड से था खास लगाव,किसे और क्यों कहा भारत का स्विटजरलैंड,दिलचस्प हैं यादें

Gandhi Jayanti: आज पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद कर रहा है। महात्मा गांधी को उत्तराखंड से खास लगाव था। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने उत्तराखंड की कुल छह यात्राएं कीं।

बापू ने वर्ष 1915 से 1946 तक तकरीबन छह बार उत्तराखण्ड की यात्रा कीं।

1929 में कुमाऊं की यात्रा पर पहुंचे महात्मा गांधी ने कौसानी में 14 दिन बिताए। यहीं पर उन्होंने अनासक्ति योग पुस्तक की प्रस्तावना लिखी। वह यहां जिस बंगले में ठहरे थे उसे बाद में अनासक्ति आश्रम नाम दिया गया। यह नाम बापू की किताब अनासक्ति योग से ही लिया गया है।

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कौसानी में बापू को हिमालय के दर्शन हुए थे। गांधीजी इस जगह से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कौसानी को भारत का स्विटजरलैंड कह डाला। आजादी के बाद 1966 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी ने इस डाक बंगले को उत्तर प्रदेश महात्मा गांधी स्मारक निधि को सौंप दिया और इसे गांधीजी की किताब के नाम पर नाम दिया गया अनासक्ति।

कुली बेगार आंदोलन से प्रभावित हुए बापू

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चलाए गए कुली बेगार आंदोलन से प्रभावित होकर बापू कुमाऊं आए। 22 जून को वह कौसानी से पैदल और डोली के सहारे बागेश्वर मुख्यालय पहुंचे, जहां स्वराज भवन की नींव रखी। एक दिन रुकने के बाद फिर कौसानी के लिए प्रस्थान कर गए।

यहां मिला चरखा

कुमाऊं की बागेश्वर प्रवास के दौरान जीत सिंह टंगडिय़ा ने बापू को स्वनिर्मित चरखा भेंट किया था। चरखे की विशेषता थी कि वह कम समय में ज्यादा ऊन कात लेता था। उसी चरखे को देखकर तब गांधीजी ने कहा था कि यह स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाने में मदद करेगा।

चरखा से लगाव

वर्धा पहुंचने के बाद बापू ने विक्टर मोहन जोशी को पत्र लिखकर एक और चरखा मंगाया, जिसे नाम दिया बागेश्वरी चरखा। जीत सिंह ने बाद में उस चरखे में और बदलाव किया, जो कताई के साथ ही बटाई भी कर लेता था। 1934 में तो उन्होंने घर में चरखा आश्रम की ही स्थापना कर दी।

चार बार उत्तराखंड की यात्रा

पहली बार बापू वर्ष 1915 के अप्रैल महीने में कुम्भ के मौके पर हरिद्वार आये और ऋषिकेश व स्वर्गाश्रम भी गए। 1916 में हरिद्वार आए और स्वामी श्रद्धानन्द के आग्रह पर उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी में व्याखान दिया। जून 1921 में वे नैनीताल जिले के खैरना होते हुए ताड़ीखेत पंहुचे। तब उन्होंने प्रेम विद्यालय के वार्षिकोत्सव में भाग लिया। 1929 में जब गांधी जी का स्वास्थ्य कुछ खराब चल रहा था तो वे पंडित नेहरू के आग्रह पर स्वास्थ्य लाभ करने कुमांऊ की यात्रा पर आए। 18 जून 1931 को वे शिमला से नैनीताल पंहुचे। मई 1946 में वे पुनः मसूरी आये और वहां आठ दिन तक रहे।

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