वेब-डेस्क :- दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा आम लोगों की ओर से किए गए उपभोग से संचालित होता है। देश की अर्थव्यवस्था में निजी उपभोग का लगभग 60% का योगदान है। निजी उपभोग के इस 60% हिस्से का एक तिहाई वैसे खर्चे हैं, जिसे गैर जरूरी खर्च माना जा सकता है। इन खर्चों में मनोरंजन, बाहर खाने और छुट्टियों पर किया गया खर्च शामिल होता है। जाहिर तौर पर इस खर्च में देश के धनवान वर्ग का बड़ा हिस्सा है पर आम आदमी या मध्यम वर्ग भी पीछे नहीं। कुल गैर जरूरी खर्च का एक तिहाई मध्यम वर्ग की ओर से ही किया जा रहा है।
मोलभाव करने वाला वर्ग अब बिना सोचे-समझे खर्च कर रहा
एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मध्यम वर्ग में खर्च करने का तरीका बदल रहा है। वह अब खर्च करने से पहले अपने पूर्वजों की तरह नहीं सोचता। उदाहरण के लिए, एक परिवार जो किराने के सामान लेने पर मोलभाव करता रहा है, वह अब कार खरीदते समय आसानी से पैसे खर्च कर देता है। इसी तरह, भारतीय समाज का एक वेतनभोगी पेशेवर घरेलू सेवाओं के लिए मोलभाव करता रहा है वह शानदार छुट्टियों की योजना बिना किसी हिचकिचाहट के बना लेता है। हालांकि, इस बदलाव का कारण लोगों की बचत बढ़ना कतई नहीं है। तो फिर कारण क्या है, आइए जानते हैं।
खर्चा बढ़ा पर आमदनी स्थिर
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स का अनुमान है कि उभरते बाजारों में मध्यम वर्ग अगले दशक में दोगुना हो जाएगा। मध्यम वर्ग के घरों की संख्या 2024 के 35.4 करोड़ से बढ़कर 2034 तक 68.7 करोड़ हो जाएगी। 2029 तक, हर तीन में से दो मध्यम वर्ग के उपभोक्ता एशिया के होने की उम्मीद है। इनमें सबसे बड़ी वृद्धि चीन, भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम से होगी। वहीं दूसरी ओर, आमदनी की बात करें तो आयकर के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 10 वर्षों से मध्यम वर्ग की आय लगभग साढ़े 10 लाख प्रति वर्ष के दायरे में ही स्थिर है, लेकिन वे अपना खर्चा लगातार बढ़ा रहे है।
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कर्ज लेने की बढ़ती प्रवृत्ति
रिपोर्ट के अनुसार मध्यम वर्ग के बीच गैर-जरूरी खर्च बढ़ने का कारण कर्ज लेने की प्रवृत्ति का लगातार बढ़ना हो सकता है। लोग बचत कम कर रहे हैं, उधार ज्यादा ले रहे हैं। एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के मार्च 2025 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में 7.2% की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो अपने प्रमुख समकक्षों की तुलना में सबसे तेज है। देश के मध्यम वर्ग में बचत घट रही है, लेकिन ऋण लेने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी घरेलू ऋण स्तरों पर चिंता व्यक्त की है। इस तरह का ऋण की मांग जीडीपी के 41% तक पहुंच चुकी है और वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में इसके 43.5% तक जाने का अनुमान है। यह आंकड़ा संकेत देता है कि लोग अपनी वर्तमान आय से अधिक खर्च कर रहे हैं, जिससे उनका वित्तीय बोझ बढ़ रहा है।
विलासिता की ओर झुकाव और टूरिज्म में दिलचस्पी बढ़ी
देश के आम लोगों में विलासिता पूर्ण जीवन के प्रति झुकाव बढ़ा है। अब लग्जरी केवल अभिजात्य वर्ग तक सीमित नहीं रही है। सोशल मीडिया, आसानी से मिलने वाले ऋण और बढ़ती डिस्पोजेबल आय ने मध्यम वर्ग को प्रीमियम जीवनशैली अपनाने की राह दिखाई है भारतीय उपभोक्ता अब हाई-एंड इलेक्ट्रॉनिक्स, डिजाइनर फैशन और कॉम्पैक्ट लग्जरी कारों पर खर्च करने को तरजीह दे रहे हैं। मिलेनियल्स और जेन जेड बुटीक, जिम और एक्सक्लूसिव लाइफस्टाइल ब्रांड्स की ओर आकर्षित हो रहे हैं। ‘नेविगेटिंग होराइजन्स’ नामक रिपोर्ट के अनुसार, 2034 तक भारतीयों की ओर से घूमने के लिए देश से बाहर जाने का खर्च 55.39 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। लोग बुटीक होटलों और लक्जरी ट्रिप को प्राथमिकता दे रहे हैं। मिस्र, अजरबैजान और जॉर्जिया जैसे किफायती लेकिन आकर्षक गंतव्य भारतीय यात्रियों को तेजी से आकर्षित कर रहे हैं। देश में कम आमदनी के बावजूद मध्यम वर्ग की प्राथमिकताओं में बदलाव का असर रीयल एस्टेट सेक्टर पर भी पड़ रहा है। पहले जहां लोग किफायती घरों को प्राथमिकता देते थे, अब वे लग्जरी हाउसिंग और गेटेड कम्युनिटी में निवेश कर रहे हैं।
नीति-निर्माताओं की ओर से बदलते रुझान पर रखने की जरूरत
मध्यम वर्ग के बीच उपभोग और कर्ज की प्रवृत्ति बताती है कि भारतीय उपभोक्ता बेहतर जीवनशैली अपनाने के लिए पारंपरिक बचत आदतों से हटकर अधिक खर्च करने को तैयार हैं। यह प्रवृत्ति आर्थिक विकास को गति तो दे रही है, लेकिन दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिए नई चुनौतियां भी पैदा कर रही है। नीति-निर्माताओं और वित्तीय संस्थानों यह जरूरी हो गया है कि इस बदलते परिदृश्य को देखते हुए आगे की रणनीति तय करें जिससे इसके नकारात्मक असर से अर्थव्यवस्था बची रहे।
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