रेखा संघर्ष और सफलता की दास्तां, आशीर्वाद से मंदिर जैसे घर तक पहुंची

रेखा संघर्ष और सफलता की दास्तां, आशीर्वाद से मंदिर जैसे घर तक पहुंची

वेब-डेस्क :- रेखा की  बचपन की कड़वी सच्चाई से लेकर बॉलीवुड की चमक तक की कहानी , जिन्हें उनकी शानदार साड़ियों और दिवा इमेज के लिए जाना जाता है, उनकी मांग का सिंदूर अक्सर गॉसिप का हिस्सा बनता है। लेकिन उनकी ज़िंदगी के संघर्ष और फ़िल्म इंडस्ट्री में लंबे संघर्ष की दास्तान अक्सर अनकही रह जाती है। 70 वर्ष की हो चुकीं रेखा आज भी जब आईफा अवॉर्ड्स में परफॉर्म करती हैं, तो उनकी चर्चा किसी नई अभिनेत्री से भी अधिक होती है।

बचपन से संघर्ष की शुरुआत :- रेखा का बचपन संघर्षों से भरा रहा। 13-14 साल की उम्र में जब उनकी पढ़ाई छुड़वाकर उन्हें फ़िल्मों में काम करने को मजबूर किया गया, तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि उनकी मां पर भारी कर्ज़ है। उनकी मां पुष्पावल्ली, जो खुद भी तमिल फ़िल्मों की मशहूर अभिनेत्री थीं, ने उन्हें को इस मायानगरी में लाकर खड़ा किया।

मुंबई का डरावना सफर :- मुंबई का जंगल जैसा माहौल 13 साल की मासूम रेखा के लिए भयावह था। इस शहर ने न तो उनके अकेलेपन को समझा और न ही उनकी भाषा को। उन्होंने  ने एक इंटरव्यू में कहा था, “यह शहर मेरे लिए किसी जंगल जैसा था, जहां मैं निहत्थी थी। इस दौरान कई पुरुषों ने मेरी मासूमियत का फ़ायदा उठाने की कोशिश की।”

फिल्मी दुनिया का कड़वा सच और सामाजिक भेदभाव :-  उनको शुरुआती दिनों में उनके सांवले रंग और दक्षिण भारतीय चेहरे के कारण ‘अग्ली डकलिंग’ कहा जाता था। इस अपमान और अस्वीकृति ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया। फ़िल्म ‘अनजाना सफर’ में जबरन एक ‘किसिंग सीन’ करने के विवाद ने उन्हें और मानसिक आघात दिया।

मुज़फ्फर अली की नज़र में रेखा की आंखों में संघर्ष की कहानी :-  फ़िल्म ‘उमराव जान’ में रेखा को चुनने की वजह बताते हुए निर्देशक मुज़फ़्फ़र अली ने कहा था, “रेखा की आंखों में गिरकर उठने का एहसास दिखता था। ज़िंदगी ने उन्हें कई बार गिराया, मगर हर बार उन्होंने और मजबूत होकर वापसी की।

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 सफलता की कहानी और मां का योगदान :-
रेखा ने वोग मैगज़ीन को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, “मेरी मां मेरी सबसे बड़ी मेंटॉर थीं। उन्होंने मुझे सिखाया कि मौलिकता पर जोर दो और वही करो जो दिल कहे।” अपनी मां के संघर्ष को देखते हुए रेखा ने कभी हार नहीं मानी।

शिखर की ओर सफर: सत्तर के दशक का बदलाव :- 1976 में फ़िल्म ‘दो अंजाने’ ने  अलग पहचान दी। 1980 के दशक तक रेखा ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘खून भरी मांग’, और ‘खूबसूरत’ जैसी सुपरहिट फ़िल्मों से टॉप अभिनेत्रियों की कतार में शामिल हो गईं। उनकी धाराप्रवाह हिंदी-उर्दू और फिटनेस ने सबको हैरान कर दिया।

रेखा और अमिताभ बच्चन रिश्तों की कहानी और सच्चाई :- रेखा और अमिताभ बच्चन के रिश्ते की चर्चा आज भी सुर्खियों में रहती है। रेखा ने अपनी कामयाबी का श्रेय कई बार इशारों में अमिताभ बच्चन को दिया है। हालांकि, इस रिश्ते की सच्चाई कभी भी सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आई।

पुष्पावल्ली का सपना:-  मंदिर जैसा घर रेखा ने अपनी मां का सपना पूरा किया और बांद्रा में एक सुंदर घर खरीदा, जिसका नाम उन्होंने ‘पुष्पावल्ली’ रखा। रेखा ने वोग मैगज़ीन को दिए इंटरव्यू में कहा था, “मुझे मंदिर जाने की जरूरत महसूस नहीं होती, मेरा घर ही मेरे लिए मंदिर है।”

परिवार के प्रति समर्पण और संघर्ष का सम्मान :-  रेखा ने अपने परिवार के लिए कई बेकार फ़िल्में साइन कीं क्योंकि उन पर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी थी। उनके जीजा तेज सप्रू ने कहा था, “रेखा ने वाकई मुश्किल हालात में अपने परिवार को संभाला और उन्हें एक मुकाम तक पहुंचाया।”

प्रेरक यात्रा और सबक
उनकी  ज़िंदगी केवल संघर्ष, प्रेम, और सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणा है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी खुद को संभालकर, एक नया मुकाम हासिल किया जा सकता है।

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