वेब -डेस्क :- सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि एक नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा खोलना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के अंतर्गत नहीं आता। शीर्ष अदालत ने इस फैसले को असंवेदनशील करार देते हुए न्यायिक दृष्टिकोण की कमी बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः लिया संज्ञान
सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च 2025 के आदेश का स्वतः संज्ञान लिया। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह मामला ‘वी द वूमन ऑफ इंडिया’ संगठन द्वारा संज्ञान में लाया गया था, जिसके बाद कोर्ट ने इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए हस्तक्षेप किया।
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सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमें यह देखकर अत्यंत दुख हो रहा है कि हाईकोर्ट के निर्णय में न्यायिक संवेदनशीलता की भारी कमी झलकती है। यह फैसला चार महीने तक सुरक्षित रखने के बाद सुनाया गया, जिससे साफ पता चलता है कि इसमें विचार किया गया था। लेकिन इसमें कानून के मूल सिद्धांतों को दरकिनार किया गया और अमानवीय दृष्टिकोण अपनाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियों को अमान्य बताते हुए उन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी।
केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से मांगा जवाब
शीर्ष अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है। साथ ही, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भी इस पर सहयोग मांगा है।
हाईकोर्ट का विवादास्पद फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि लड़की के स्तनों को छूना, उसके पायजामे का नाड़ा खोलना और उसे पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश केवल “तैयारी” का हिस्सा है, न कि बलात्कार के प्रयास का वास्तविक कार्य।हाईकोर्ट के इस फैसले पर महिला संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संज्ञान में लिया और विवादास्पद आदेश पर रोक लगाने का निर्देश दिया।
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