क्या स्वदेशी मैसेजिंग एप वाट्सएप को दे पाएगा टक्कर?

क्या स्वदेशी मैसेजिंग एप वाट्सएप को दे पाएगा टक्कर?

web-desk :- वाट्सएप के भारतीय विकल्प के रूप में लॉन्च हुआ जोहो का मैसेजिंग एप ‘अरट्टाई’ (Arattai) बीते सितंबर में सिर्फ तीन दिनों में 3.5 लाख से ज्यादा डाउनलोड पार कर गया। इसे सरकार के कई मंत्रियों ने भी सार्वजनिक रूप से सराहा लेकिन अब बड़ा सवाल यह है कि क्या अरट्टाई अपनी यह शुरुआती रफ्तार बरकरार रख पाएगा? और क्या ‘मेड इन इंडिया’ ब्रांडिंग इसके लिए वरदान बनेगी या दीवार?

क्या वाट्सएप को चुनौती दे सकता है अरट्टाई?
डिजिटल रिसर्च के विशेषज्ञ प्रभु राम के मुताबिक, भारत अब दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल उपयोगकर्ता देशों में से एक है जहां लोग रोजाना 7.5 घंटे स्मार्टफोन पर बिताते हैं। ऐसे में कोई भी इनोवेटिव एप बड़ा बदलाव ला सकता है। उनका कहना है कि जोहो की तकनीकी क्षमता और डाटा प्राइवेसी पर फोकस अरट्टाई को बाकी देसी एप्स से अलग बनाता है। वहीं जोहो के फाउंडर श्रीधर वेम्बू ओपन स्टैंडर्ड अपनाने की बात करते हैं ताकि अरट्टाई को UPI की तरह इंटरऑपरेबल बनाया जा सके। अगर जोहो अपनी एंटरप्राइज यूजर बेस जो 2.5 लाख से अधिक छोटे व्यवसायों से जुड़ा है को साथ ला पाया तो अरट्टाई को शुरुआती बढ़त मिल सकती है।

सिर्फ नाम नहीं, ‘रिलेवेंस’ से बनेगा पहचान
पल्प स्ट्रेटेजी की ब्रांड स्ट्रैटेजिस्ट अंबिका शर्मा का कहना है कि “अरट्टाई” नाम भले ही दक्षिण भारतीय मूल का है, लेकिन किसी एप की सफलता उसके नाम पर नहीं, बल्कि उसकी रिलेवेंस और यूज़र एक्सपीरियंस पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा, “अगर वाट्सएप को टक्कर देनी है, तो अरट्टाई को सिर्फ चैटिंग तक सीमित न रखकर, प्राइवेसी, लोकल इंटीग्रेशन और डिजिटल इंडिया स्टैक के साथ गहराई से जुड़ना होगा।” अंबिका के अनुसार वाट्सएप की ताकत सिर्फ चैट नहीं, बल्कि पेमेंट्स, बिजनेस और ई-कॉमर्स इकोसिस्टम है। अरट्टाई को भी अपनी रोडमैप में इन्हीं क्षेत्रों पर फोकस करना होगा।

‘Uninstall WhatsApp’ कोई स्ट्रैटेजी नहीं है
बिंज लैब्स के को-फाउंडर आर्यन अनुराग ने कहा कि केवल भावनात्मक नारे से उपयोगकर्ता नहीं जुड़ते। उन्होंने कहा, “यूजर्स तभी एप बदलते हैं जब उन्हें कुछ ज्यादा बेहतर मिलता है। फिलहाल अरट्टाई में कोई ऐसी फीचर नहीं दिखती जो वाट्सएप से आगे हो।” उनके अनुसार, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन की कमी और कठिन नाम उच्चारण जैसे फैक्टर इसे नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन्होंने कहा “अगर भरोसे और सुरक्षा की गारंटी नहीं दी गई, तो लोग कभी वाट्सएप छोड़कर नहीं आएंगे।”
सिर्फ ‘मेड इन इंडिया’ टैग काफी नहीं

असिडुअस ग्लोबल की फाउंडर सोमदत्ता सिंह का कहना है कि अरट्टाई को लोगों में उत्सुकता जरूर मिली, लेकिन वाट्सएप जैसी आदत तोड़ना आसान नहीं है। उन्होंने कहा “मैसेजिंग एप्स नेटवर्क और भरोसे पर चलते हैं। जो एप रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो जाएं वही टिकते हैं।” उनके अनुसार, अरट्टाई अगर लंबे समय तक टिकना चाहता है तो उसे सिर्फ लोकल नहीं यूनिवर्सल अपील बनानी होगी।

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ब्रांडिंग होगी सबसे बड़ी चुनौती
बीनेक्स्ट की डायरेक्टर प्रीति आउलक ने कहा कि जोहो ने तकनीकी रूप से शानदार काम किया है लेकिन ब्रांडिंग कमजोर कड़ी है। उन्होंने कहा, “अरट्टाई शब्द का अर्थ ‘बातचीत’ है, लेकिन उत्तर भारत में यह नाम विदेशी जैसा लगता है। लोगो डिजाइन भी आकर्षक नहीं है।” प्रीति के अनुसार, एप को सफलता के लिए तीन चीजों पर फोकस करना होगा-

  • ब्रांड अवेयरनेस बढ़ाना
  • वाट्सएप से आगे निकलने वाले फीचर्स लाना
  • तकनीकी स्थिरता सुधारना

प्रीति ने कहा, “अरट्टाई में क्षमता है, लेकिन इसे सफल होने के लिए ‘मेड इन इंडिया’ टैग से कहीं आगे जाना होगा।”

अरट्टाई की तेजी से बढ़ती डाउनलोड संख्या यह साबित करती है कि भारत में स्थानीय एप्स के लिए संभावनाएं जिंदा हैं। लेकिन यह भी सच है कि वाट्सएप जैसी विशाल नेटवर्क इकॉनमी को चुनौती देना आसान नहीं। अगर अरट्टाई अपनी तकनीकी मजबूती, सुरक्षा, और भारतीय संवेदनाओं को एकसाथ जोड़ पाए तो यह सिर्फ एक एप नहीं बल्कि भारत के डिजिटल आत्मनिर्भरता अभियान का प्रतीक बन सकता है।

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