होलाष्टक की जानिए मान्यता, पौराणिक कथा और बरतने योग्य सावधानियां

होलाष्टक की जानिए मान्यता, पौराणिक कथा और बरतने योग्य सावधानियां

वेब- डेस्क :- होलाष्टक हिंदू धर्म में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होली तक के आठ दिनों की अवधि को कहा जाता है। इस वर्ष, होलाष्टक 8 मार्च 2025 से 16 मार्च 2025 तक रहेगा। इस अवधि को शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है, इसलिए विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण जैसे मांगलिक कार्य इस दौरान नहीं किए जाते हैं।

होलाष्टक के पीछे की पौराणिक कथा :- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे, जिससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आठ दिनों तक कठोर यातनाएं दीं। इन आठ दिनों को ही होलाष्टक कहा जाता है। इन दिनों में ग्रहों की स्थिति भी अशुभ मानी जाती है, जिससे शुभ कार्यों में विघ्न आ सकता है।

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होलाष्टक के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां:-

  • शुभ कार्यों से परहेज- इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार जैसे शुभ कार्यों को टालना चाहिए, क्योंकि यह समय अशुभ माना जाता है।
  • धार्मिक अनुष्ठान- इस समय में भगवान की पूजा, भजन-कीर्तन, ध्यान और आध्यात्मिक गतिविधियों में समय बिताना लाभकारी होता है।
  • दान-पुण्य-जरूरतमंदों को दान देना और सेवा कार्य करना इस अवधि में विशेष फलदायी माना जाता है।

होलाष्टक का पालन मुख्यत उत्तर भारत में किया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में इसकी मान्यता कम है। इस अवधि का मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति है, जो हमें आंतरिक शांति और संतुलन की ओर ले जाता है।

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