मुस्लिम कांस्टेबल दाढ़ी रखने पर सस्पेंड, CJI चंद्रचूड़ ने दी तारीख

मुस्लिम कांस्टेबल दाढ़ी रखने पर सस्पेंड, CJI चंद्रचूड़ ने दी तारीख

नई दिल्ली :- एक मुस्लिम कांस्टेबल को अपनी ड्यूटी के दौरान दाढ़ी रखने के कारण सस्पेंड कर दिया गया था। यह मुस्लिम कांस्टेबल महाराष्ट्र राज्य रिजर्व पुलिस बल (SRPF) मे कार्यरत था | अब इस मामले मे नया मोड आ गया है, क्यौकी निलंबित मुस्लिम कांस्टेबल जहीरूद्दीन एस. बेडाडे ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था,इससे पहले, बेंच ने कहा था कि अगर वह दाढ़ी कटवाने के लिए राजी हो जाएं तो उनका सस्पेंशन रद्द कर दिया जाएगा. हालांकि, याचिकाकर्ता ने तब शर्त मानने से इनकार कर दिया था |

यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और पुलिस सेवा के नियमों के बीच संतुलन का है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर व्यक्ति को धार्मिक आस्था का पालन करने का अधिकार है। यह विवाद समाज में विभिन्न प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कर रहा है। पर जब यह मामला सीजेआई चंद्रचूड़ को बताया गया कि मामला लोक अदालत में है और अभी तक इसका समाधान नहीं हुआ है तो उन्होंने कहा, ‘यह संविधान का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है… हम इस मामले को नॉन मिसलेनियस डे पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे.’

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CJI चंद्रचूड़ का फैसला

इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय ने संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले की सुनवाई के लिए तारीख निर्धारित की है। कांस्टेबल का तर्क है कि दाढ़ी रखना उनकी धार्मिक मान्यता का हिस्सा है और इसे सीमित करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।सुप्रीम कोर्ट में सोमवार और शुक्रवार मिसलेनियस डे होते हैं, जिसका मतलब है कि उन दिनों सिर्फ नई याचिकाएं ही सुनवाई के लिए ली जाएंगी और नियमित सुनवाई वाले मामलों की सुनवाई नहीं होगी. मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को नॉन मिसलेनियस डे के रूप में जाना जाता है, जिस दिन नियमित सुनवाई वाले मामलों की सुनवाई होगी |

कानूनी दृषिकोण

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्था का पालन करने का अधिकार है। इस संदर्भ में CJI चंद्रचूड़ के समक्ष यह सवाल उठाया जाएगा कि क्या दाढ़ी रखना भारतीय पुलिस सेवा के नियमों का उल्लंघन है, या यह धार्मिक स्वतंत्रता का मामला है।यह याचिका महाराष्ट्र राज्य रिजर्व पुलिस बल (SRPF) के एक मुस्लिम कांस्टेबल की थी, उसे दाढ़ी रखने के कारण निलंबित कर दिया गया था, जो कि 1951 के बॉम्बे पुलिस मैनुअल का उल्लंघन था |

इस मामले के चलते समाज में विभिन्न प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं। कुछ लोग इसे धार्मिक अधिकारों के हनन के रूप में देख रहे हैं, जबकि दूसरों का मानना है कि पुलिस सेवा के नियम और अनुशासन का पालन करना अनिवार्य होना चाहिए। अब देखना यह है कि CJI चंद्रचूड़ का इस मामले में क्या फैसला होता है।

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