भोपाल :- यूं तो मध्य प्रदेश की माटी ने अनेक मूर्धन्य पत्रकारों को जन्म दिया है जिसमें राहुल बारपुते ,सुरेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी जैसी तमाम हस्तियों ने राष्ट्रीय पत्रकारिता में मध्य प्रदेश का न केवल नाम रोशन किया बल्कि अपनी लेखनी के माध्यम से राज भी किया और पत्रकारिता को नई दिशा दी। मगर समकालीन पत्रकारिता में एक नाम जो न केवल बेहद चर्चित है बल्कि वह अपनी पत्रकारिता और लेखन के दम पर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में खास मुकाम बनाने में सफल रहा है वह नाम है कृष्ण मोहन झा का जिसने पत्रकारिता की हर विधा में न केवल उच्च मानदंडों के साथ खुद को स्थापित किया बल्कि बतौर लेखक भी वह खास नामवर है।
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21 फरवरी 1976 को मंडला जैसे पिछड़े और कृषि प्रधान जिले में जन्मे कृष्ण जो मोहन भी हैं के पूज्य पिता श्री स्मृति शेष मदन मोहन जी एवं माता स्मृति शेष प्रेमलता जी को भी शायद सपने में यह गुमान नहीं होगा की एक दिन उनका लाल कृष्ण मोहन बनकर पत्रकारिता के क्षेत्र में मंडला से निकालकर प्रदेश और फिर देश में छा जाएगा। यह इसलिए एक बड़े वकील और राजनीतिक परिवार का बच्चा विज्ञान में स्नातक करने के बाद बजाएं कानून की डिग्री हासिल करने की जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन में पीजी डिप्लोमा कर बैठा।
मंडला में पत्रकारिता के साथ-साथ राष्ट्रवादी विचारधारा और सामाजिक सक्रियता में भी कृष्न मोहन ने अपना योगदान देना शुरू किया और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की मंडल के जिला संयोजक के बाद स्वदेशी जागरण मंच और हिंदू जागरण मंच के आंदोलन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया। जहां वे धर्मांतरण के खिलाफ चलाए गए आंदोलन में काम करते रहे वहीं उन्होंने मां नर्मदा के प्रति अपने लगाव के चलते नर्मदा शुद्धिकरण मंच की स्थापना की और नर्मदा तटों के सौंदरीकरण को संवारने और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण काम किया। वे न केवल यहीं तक सीमित रहे बल्कि खेल गतिविधियों से भी जुड़े रहे और उन्होंने मंडला में क्रिकेट संघ, तेराकी संघ और जिला ओलंपिक संघ की स्थापना भी की यानी पत्रकारिता के साथ-साथ अपने सामाजिक सरोकारों को भी यह शख्स नहीं भूला और सामाजिक सरोकारों को भी निभाता रहा।
मंडला में कृष्ण मोहन की पत्रकारिता की यात्रा 1996 से शुरू हुई और उन्होंने अमृत संदेश, जनसत्ता, देशबंधु जैसे बड़े अखबारों में ब्यूरो प्रमुख के रूप में काम किया। 1999 में उन्होंने मंडला समाचार नामक लोकल केबल न्यूज़ की शुरुआत की जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती थी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में इस तरह के कार्य की कल्पना ही संभव नहीं थी लेकिन कृष्णमोहन ने यह कार्य अपने तत्कालीन पत्रकारिता के गुरु शशिकांत मिश्र के साथ मिलकर किया शशिकांत ने पत्रकारिता में मास्टर डिग्री प्राप्त की थी लेकिन वह भी कृष्णमोहन के निर्णय से सहमत नहीं थे खैर मां नर्मदा के आशीर्वाद से उसका अभियान सफल रहा जो बहुत जल्दी ही लोकप्रिय हो गया । मंडला की प्रतिभाओं को बड़ा मंच के साथ साथ यह लोकल नेटवर्क लोगों की आवाज बन गया,|यानी पत्रकारिता और सामाजिक सरोकारों कारों का उनका काफिला मंडला में चलता रहा बल्कि यूं कहें कि दम से चला रहा तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रदेश की केबिनेट मंत्री भरे मंच से कहती है कृष्णमोहन झा मेरे राजनैतिक गुरु है अपने चैनल के माध्यम से उन्होंने बोलना सिखाया और हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया|
सामाजिक सरोकारों की पत्रकारिता का सफर बहुत बढ़िया चल रहा था मगर कहते हैं ना कि इंसान नियति के आगे मजबूर है और शायद कृष्ण मोहन झा के संदर्भ में नियति को कुछ और ही मंजूर था । नियति कृष्ण मोहन को मंडला मैं ही सीमित नहीं रखना चाहती थी बल्कि नियति की मंशा थी की कृष्ण मोहन प्रदेश और फिर देश के पत्रकारिता के आकाश पर नक्षत्र की तरह चमके। डॉ वसीम बरेलवी का एक शेर कृष्ण मोहन पर बड़ा मौजू है जो इस तरह है कि.. हम वह तारीख हैं जहनों में रहना है जिसे.. कागजी पुर्जे नहीं जो फाड़ डाले जाएंगे। कृष्ण मोहन ने मंडला में शानदार पारी खेलते हुए भोपाल की ओर रुख किया और भोपाल को अपने कर्म भूमि बनाकर प्रादेशिक पत्रकारिता का इस तरह आगाज किया की बहुत जल्दी ही वह राष्ट्रीय फलक पर अपनी मेहनत की दम पर छा गए। वे जहां चैनल नंबर वन के एमपीसीजी के प्रमुख बने वहीं दूरदर्शन की आंखों देखी में स्टेट रिपोर्टर की भूमिका भी निभाई। उन्होंने राष्ट्रीय न्यूज सर्विस की स्थापना की जो 1000 से अधिक समाचार पत्रों को समाचार उपलब्ध कराती है। कृष्ण मोहन की लेखनी राष्ट्रीय मुद्दे और राजनीतिक विश्लेषणो पर केंद्रित रही लेकिन सामाजिक विषयों पर भी उनके लेख आते रहे। दैनिक भास्कर दैनिक, जागरण ,राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, हरिभूमि , पांचजन्य जैसे 200 से अधिक समाचार पत्रों में उनके लेख नियमित प्रकाशित होते रहे।
यदि उनकी उम्र और उनकी पत्रकारिता के सफर को देखें तो यकीन मानिए कि उनकी उम्र की तुलना में उनका पत्रकारता का सफर शायद ज्यादा बड़ा है जो बहुत उपलब्धियां भरा है ।वह कई प्रतिष्ठित राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किये जा चुके हैं और मध्य प्रदेश विधानसभा की कई समितियां के सदस्य के साथ-साथ विधानसभा की प्रतिष्ठित पत्रिका विधायिनी के संपादक मंडल में भी उन्हें सदस्य बनाया जा चुका है। ऐसा नहीं है की भोपाल मैं पत्रकारिता और पत्रकारिता में अपने आप को स्थापित करना आसान काम रहा हो इसके लिए जबरदस्त मेहनत लिखने का कौशल और ज्ञान की आवश्यकता होती है जो कृष्ण मोहन में कूट कूट कर भरा है और मेरा यह मानना है कि अपने डिवोशन ,डेडीकेशन और भाग्य की दम पर कृष्ण मोहन ने पत्रकारिता में जो मुकाम हासिल किया वह आज अच्छे अच्छों को नसीब नहीं है।
एक शानदार पत्रकार के साथ-साथ कृष्ण मोहन झा एक उद्भट्ट लेखक भी है और वे कई पुस्तक लिख चुके हैं जिसमें सियासत नामा, शिवराज .संकल्प सेवा समर्पण की त्रिवेणी ,प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के जीवन और कृतित्व पर आधारित पुस्तक यशस्वी मोदी जिसकी सराहना स्वयं माननीय मोहन भागवत जी ने की थी और अमित शाह ने इसका विमोचन किया था ,राजनीतिक दस्तावेज, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई पर आधारित पुस्तक आज़ात शत्रु अटल ,श्री नरेंद्र मोदी के जन्म दिवस पर महानायक मोदी और संघ विमर्श तथा भागवत संदेश यह दौनो ही पुस्तक शीघ्र ही विमोचन के लिए तैयार हैं। एक पत्रकार और एक लेखक के साथ-साथ कृष्ण मोहन गीतकार भी है और इनके द्वारा रचित ..शान बढ़ाने आया हूं ..वाला गीत बहुत चर्चित रहा है।
पत्रकारिता, लेखन और सामाजिक योगदान के लिए कृष्ण मोहन झा को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले हैं जिनमे मुख्य है मध्य प्रदेश का टेपा सम्मान, मन्नत सम्मान ,अंतर्राष्ट्रीय मैथिल गौरव सम्मान, उद्भव सम्मान, लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान दिल्ली, मीडिया रत्न सम्मान दिल्ली प्रमुख है।
कृष्णमोहन एक अच्छे पत्रकार और लेखक तो है ही मगर उनका सबसे बड़ा गुण है वे बड़ों को सम्मान और छोटों को स्नेह देना बखूबी जानते हैं। संबंधों को निभाना कोई कृष्ण मोहन से सीखे। कृष्ण मोहन की राष्ट्रवादी विचारधारा और संघ के प्रति समर्पण से हर कोई वाकिफ है और उन्होंने कांग्रेसी शासन में भी कभी इस चीज को छुपाया नहीं। लेकिन उनके जितने मधुर संबंध शिवराज जी या मोहन यादव से हैं तो उतने ही मधुर संबंध दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जी जैसे कई लोगों से रहे ।संबंधों के बीच विचारधारा को उन्होंने कभी आने आने नहीं दिया। मेरा और उनका साथ विगत 25 वर्षों से है और मैं उनके संघर्ष भरी पत्रकारिता की यात्रा स्वयं देखी है। मंडला जैसे छोटे से शहर से राजधानी में आना और फिर पत्रकारिता के क्षेत्र में भोपाल में जमना और भोपाल के बाद देश में अपनी पहचान बनाना इतना आसान नहीं है। अपने सिद्धांतों से और स्वाभिमान से इस व्यक्ति ने कभी समझौता नहीं किया यह बात अलग है की कई बार उसको इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है लेकिन बंदा कभी पीछे नहीं हटा। मेरे से उम्र में तकरीबन 20 वर्ष छोटे हैं और मुझे हमेशा बड़े भाई का सम्मान दिया है और कभी मुझे यह महसूस ही नहीं होने दिया की यह मेरा सगा भाई नहीं है। मुझे याद है जब सहारा समय में एमपीसीजी के प्रमुख के रूप में ने ज्वाइन करना था तत समय में शिवपुरी अपने घर आया हुआ था यह भोपाल से शिवपुरी सिर्फ इसलिए आए की ज्वाइन करने से पहले मुझसे आशीर्वाद लेना था भला आज की दुनिया में यह सब चीज कहीं देखने में आती है ? कृष्ण मोहन का यह गुण बताता है कि वह कितने खानदानी और पान दानी है तथा उनको उनके माता-पिता ने कैसी शिक्षा दी है।
मेरा यह भी मानना है की कृष्ण मोहन झा की इस जीवन यात्रा में उनकी अर्धांगिनी श्रीमती मोनिका का अतुलनीय योगदान रहा है जो कंधे से कंधा मिलाकर अपने पति के हर संघर्ष में न केवल खड़ी रही है बल्कि उन्हें सदैव मानसिक संबल भी दिया और घर तथा बच्चों की प्रत्येक जिम्मेदारी कुशलता से निभाई। जाहिर है कृष्ण मोहन की सफलता में उनका उतना ही योगदान है इस बात को खारिज करना नाइंसाफी होगी।आज कृष्ण मोहन झा सफल नहीं बेहद सफल है लेकिन इस सफलता के पीछे उनका परिश्रम और उनके परिवार का श्रम किसी को भी दिखाई नहीं देता। उनका जीवन संघर्ष साधना और जीबढ़ता की वह मिसाल है जिसने पत्रकारिता ,उनके राष्ट्रवादी विचार और सामाजिक सुधारो को व्यक्त करने का न केवल एक माध्यम बनाया बल्कि उसे पूर्णता स्थापित भी किया। इसमें कोई शक नहीं है कि उनकी लेखनी और सामाजिक सक्रियता, पत्रकारिता के साथ-साथ वर्तमान समाज को एक नई दिशा देने का अतुलनीय प्रयास कर रही है।
उनके जन्म दिवस पर मेरी अनंत शुभकामनाएं और आशीर्वाद । जनाब वसीम बरेलवी के इस शेर के साथ में अपनी बात समाप्त करता हूं ..जहां रहेगा वहां रोशनी लुटाएगा. किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता……
आलोक एम इन्दौरिया
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक है)
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