विश्वप्रसिद्ध पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन, पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि 

विश्वप्रसिद्ध पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन, पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि 

वाराणसी :-  काशी की विश्वप्रसिद्ध सुर–धारा मौन हो गई। पद्मविभूषण (2020) से अलंकृत, विश्वविख्यात शास्त्रीय गायक, ठुमरी–सम्राट और भक्ति–रस के अद्भुत साधक पंडित छन्नूलाल मिश्र अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन से न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत, बल्कि संपूर्ण काशी और विशेषकर संकटमोचन की सांगीतिक परंपरा एक गहरी शोकछाया में डूब गई है।

पंडित जी ने ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती और होरी को जिस सहजता और आत्मीयता से गाया, वह उन्हें शास्त्रीय संगीत की भीड़ में अलग पहचान देता है। उनकी आवाज़ में गंगा–घाटों की मिठास, बनारसी बोली की आत्मीयता और लोक–संस्कारों की गहराई थी।

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वे केवल मंचीय कलाकार नहीं थे, बल्कि शास्त्रीय संगीत को लोकजीवन से जोड़ने वाले सेतु भी थे। पंडित जी ने तुलसीकृत रामचरितमानस को अपने स्वरों में गाकर अनगिनत लोगों के हृदय तक पहुँचाया। उनका गाया मानस केवल संगीत नहीं था, बल्कि भक्ति और लोकमंगल की साधना थी।
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट में लिखा कि सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। वे जीवनपर्यंत भारतीय कला और संस्कृति की समृद्धि के लिए समर्पित रहे। उन्होंने शास्त्रीय संगीत को जन-जन तक पहुंचाने के साथ ही भारतीय परंपरा को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने में भी अपना अमूल्य योगदान दिया। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे सदैव उनका स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त होता रहा। साल 2014 में वे वाराणसी सीट से मेरे प्रस्तावक भी रहे थे। शोक की इस घड़ी में मैं उनके परिजनों और प्रशंसकों के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट करता हूं। ओम शांति!

संकटमोचन और महंत वीरभद्र मिश्र से आत्मीय संबंध
पंडित छन्नूलाल जी का जीवन संकटमोचन मंदिर और वहाँ की परंपराओं से गहराई से जुड़ा रहा। वे वर्षों तक संकटमोचन संगीत समारोह के प्रमुख आकर्षण रहे। उनके जीवन की एक विशेष कथा यह रही कि महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र (पूर्व महंत, संकटमोचन मंदिर, गंगा–योद्धा और समाज सुधारक) उनसे गहराई से जुड़े रहे।
महंत जी शास्त्रीय संगीत के बड़े रसिक थे और उन्होंने पंडित जी को अपना गुरु माना। जीवन के लंबे काल तक सप्ताह में दो बार पंडित जी संकटमोचन मंदिर में जाकर महंत जी को स्वर–साधना सिखाते थे। यह गुरु–शिष्य परंपरा केवल संगीत की शिक्षा भर नहीं थी, बल्कि आत्मा और श्रद्धा का संवाद भी था। महंत जी पंडित जी को हर संभव सहयोग और संरक्षण देते रहे, और इसीलिए पंडित जी भी स्वयं को संकटमोचन का आजीवन गायक मानते रहे।

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