‘बेबी शार्क डु डूडुडू…’ सुनते ही बच्चा खुश, बढ़ रही है ‘ड‍िज‍िटल महामारी’

‘बेबी शार्क डु डूडुडू…’ सुनते ही बच्चा खुश, बढ़ रही है ‘ड‍िज‍िटल महामारी’

वेब-डेस्क :- बच्‍चा खाना नहीं खा रहा और लगातार रोए जा रहा है, तभी मां ने मोबाइल ल‍िया और उसे दे द‍िया। ‘बेबी शार्क डु डूडुडू…’ सुनते हुए बच्‍चे ने खुशी-खुशी खाना शुरू कर द‍िया। बच्‍चों के साथ हो रहे ऐसे नजारे आपने अपने आसपास जरूर देखे होंगे। घर के काम से थककर या फिर घर और बहार दोनों की ज‍िम्‍मेदार‍ियां संभालती मांओं ने बच्‍चों को संभालने का ये आसान तरीका अपनाया। लेकिन धीरे-धीरे यही बच्‍चे माता-पिता का हाथ छोड़, मोबाइल का ही हाथ थाम रहे हैं। अब तो आलम ये है कि सोशल मीड‍िया और मोबाइल का ये चस्‍का बच्‍चों के ल‍िए ‘ड‍िज‍िटल महामारी’ साबित हो रहा है।

स‍िर्फ सोशल मीड‍िया पर नहीं फोड़ सकते ठीकरा
भारत समिट में चाइल्‍ड साइकायट्र‍िस्‍ट डॉ. अम‍ित सेन और क्‍यूर‍ियस पेरैंट के फाउंडर, हरप्रीत स‍िंह ग्रोवर ने इस व‍िषय पर खुलकर बात की। चाइल्‍ड साइकायट्र‍िस्‍ट डॉ. अम‍ित सेन बताते हैं, ‘ये बात सही है कि प‍िछले कुछ सालों में बच्‍चों के फोकस में कमी आना, उनकी मेंटल हेल्‍थ की परेशान‍ियां, ड‍िप्रेशन, एनजाइटी जैसी चीजों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। इस सब में सोशल मीड‍िया और ड‍िजि‍टल दुनिया का हाथ है, इसमें कोई दोराहे नहीं हैं। इस बढ़ती हुई परेशानी को देखते हुए सारा ठीकरा सोशल मीड‍िया पर फोड़ देना भी सही नहीं है। क्‍योंकि हमें ये समझना पड़ेगा क‍ि उन्‍हें मोबाइल क‍िसने द‍िया। हमें समझना होगा कि बड़े होने के नाते हमारा उनकी ज‍िंदगी में क्‍या रोल है?’

देखें अपने बच्‍चे की दुनिया को
डॉ. सेन आगे बच्‍चों में बढ़ती इस परेशानी पर बात करते हुए कहते हैं, ‘बच्‍चों पर सिर्फ माता-पिता का असर नहीं होता। बच्‍चा अपने स्‍कूल से, अपने दोस्‍तों से, आपने आसपास के माहौल से हर चीज से सीखता है। ऐसे में बच्‍चों के बीच बढ़ती इस परेशानी पर सिर्फ एक चीज पर फोकस कर नहीं देखा जा सकता। हमें बच्‍चों के इर्द-ग‍िर्द बनती इस पूरी दुनिया को देखना होगा, समझना होगा।

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खुश‍ियों का जर‍िया ‘सोशल मीड‍िया’ न बनने दें
क्‍यूर‍ियस पेरैंट के फाउंडर, हरप्रीत स‍िंह ग्रोवर बताते हैं, ‘दरअसल सोशल मीड‍िया हमारे बच्‍चों को कंज्‍यूमर बना रहा है। वह बच्‍चों को स‍िखा रहा है कि खुश‍ियां बाहरी चीजों से आती है। हम हाल ही में बीच पर गए और वहां मुझे तीन टीनेजर बच्‍च‍ियां नजर आईं, हम 3 घंटे वहां थे और वो बच्‍च‍ियां भी। लेकिन इन तीन घंटों में ये लड़क‍ियां एक बार भी पानी में नहीं गईं। वो स‍िर्फ वहां फोटो खींचती रहीं। यहां क‍िसी को जज करने की जरूरत नहीं है, लेकिन हमें अपने बच्‍चों को ये स‍िखाना होगा कि खुश‍ियां एक्‍सपीरंस करने में है, उसे बताने में नहीं। सोशल मीड‍िया पर वेलीडेशन सबसे बड़ी परेशानी है।’

मदरहुड के साथ फादरहुड भी है जरूरी
हरप्रीत स‍िंह ग्रोवर बताते हैं, ‘मुझे लगता है कि 13 साल तक के बच्‍चों को हमें सोशल मीड‍िया से दूर रखना ही होगा। हमें बच्‍चों का स्क्रीन टाइम ल‍िम‍िट करना होगा, हमें उन्‍हें बताना होगा कि इस उम्र में ‘ड‍िज‍िटल प्राइवेसी’ नहीं होनी चाहिए। हमें ये ध्‍यान रखना होगा कि जैसे इंटरनेट के जरिए आपका बच्‍चा दुनिया से म‍िल रहा है, वैसे ही दुनिया भी आपके बच्‍चे तक पहुंच रही है। ऐसे में आपको उनकी ड‍िज‍िटल लाइफ पर ध्‍यान देना होगा। वहीं डॉ. अम‍ित सेन कहते हैं कि हमें ये समझना होगा कि बच्‍चों की पेरैंट‍िंग का, उन्‍हें सोशल मीड‍िया से दूर रखने का ज‍िम्‍मा स‍िर्फ मांओं का नहीं है। खासकर उस दौर में जब मह‍िलाएं भी वर्कफोर्स का ह‍िस्‍सा हैं। इस दौर में हमें फादरहुड की बात करनी होगी। बच्‍चों को इस ड‍िजि‍टल महामारी से बचाने के ल‍िए माता-पिता दोनों को म‍िलकर काम करना होगा।

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