दक्षिणेश्वर काली :- दक्षिणेश्वर काली मंदिर को लेकर एक बेहद रोचक और आध्यात्मिक कहानी प्रचलित है। यह मंदिर कोलकाता के पास हुगली नदी के किनारे स्थित है और इसे रानी रासमणि ने बनवाया था।
रानी रासमणि का सपना
रासमणि का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। बहुत कम उम्र में उनकी शादी एक समृद्ध व्यापारी राजचंद्र दास से हो गई, जो जान बाजार, कोलकाता के रहने वाले थे। राजचंद्र की मृत्यु के बाद, रासमणि ने अपने व्यापार, संपत्ति और परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाई और समाज में अपनी जगह बनाई।
रानी रासमणि (1793 – 1861) बंगाल की एक प्रभावशाली महिला थीं, जिन्होंने समाजसेवा, धार्मिकता और दृढ़ नारी नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया। वे न केवल एक सफल व्यापारी परिवार की मुखिया थीं, बल्कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर की संस्थापक भी थीं – एक ऐसा मंदिर जो आगे चलकर रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद जैसे महान संतों की साधना भूमि बना।
यह सपना उनके जीवन का turning point बना। उन्होंने तत्काल दक्षिणेश्वर में 20 एकड़ भूमि खरीदी और मंदिर निर्माण का कार्य शुरू करवाया।
स्वप्न में देवी काली स्वयं प्रकट हुईं और उन्होंने रानी रासमणि से कहा:
“तुम वाराणसी मत जाओ। मेरे लिए गंगा के किनारे एक मंदिर बनवाओ और वहाँ मेरी मूर्ति स्थापित करो। मैं वहाँ रहूँगी और तुम्हारी पूजा स्वीकार करूँगी।”
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इस स्वप्न से रानी अत्यंत प्रभावित हुईं और उन्होंने अपनी वाराणसी यात्रा रद्द कर दी। इसके बाद उन्होंने दक्षिणेश्वर में गंगा नदी के तट पर एक भव्य काली मंदिर का निर्माण कराया।
मंदिर निर्माण की प्रक्रिया
मंदिर का निर्माण कार्य 1847 में शुरू हुआ और 1855 में पूर्ण हुआ।
इस भव्य मंदिर परिसर में 12 शिव मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, नट मंदिर, और एक विशाल प्रांगण भी है।
मंदिर में प्रतिष्ठित देवी काली को “भवतरिणी” के रूप में पूजा जाता है।
रामकृष्ण परमहंस का जुड़ाव
इस मंदिर की प्रसिद्धि का एक बड़ा कारण यह भी है कि महान संत रामकृष्ण परमहंस ने यहीं पर देवी काली की उपासना की थी। वे इस मंदिर के पुजारी भी रहे। यहीं पर उन्होंने दिव्य अनुभूतियाँ प्राप्त कीं और यहीं से उनकी आध्यात्मिक यात्रा का विस्तार हुआ।
रामकृष्ण परमहंस (1836–1886) एक महान संत और अध्यात्मिक गुरु थे, जिनका जन्म बंगाल (अब पश्चिम बंगाल) के कामारपुकुर गाँव में हुआ था। उनका असली नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। जब रानी रासमणि ने दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनवाया, तो वहाँ पूजा-अर्चना के लिए एक योग्य पुजारी की तलाश की गई। पहले यह कार्य रामकृष्ण के बड़े भाई रामकुमार को सौंपा गया। लेकिन उनके देहांत के बाद रामकृष्ण को मुख्य पुजारी नियुक्त किया गया।
माँ काली के प्रति उनकी भक्ति
रामकृष्ण परमहंस को माँ काली से बहुत गहरी और व्यक्तिगत भक्ति थी। वो माँ काली को सिर्फ एक मूर्ति नहीं, बल्कि साक्षात जीवित माँ मानते थे। उन्होंने मंदिर में साधना करते हुए गहन ध्यान और भक्ति में कई बार माँ काली के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त किए। कई बार वो भक्ति में इतने डूब जाते कि समाधि की अवस्था में चले जाते, जिससे देखने वाले लोग उन्हें दिव्य मानने लगे।
रामकृष्ण परमहंस ने अपना अधिकांश जीवन दक्षिणेश्वर काली मंदिर के परिसर में ही साधना करते हुए बिताया। यहीं उन्होंने आत्मबोध पाया और अनेक भक्तों का मार्गदर्शन किया।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भक्ति, श्रद्धा और देवी काली की कृपा का जीवंत उदाहरण है। रानी रासमणि का सपना और उस पर उनका विश्वास, आज लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुका है।
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