वेब-डेस्क :- भारत का बड़ा हिस्सा एक बार फिर भीषण गर्मी से जूझ रहा है। बीती 25 फरवरी को गोवा और महाराष्ट्र में देश में इस साल की पहली हीटवेव दर्ज की गई, जो कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा परिभाषित सर्दियों (जनवरी-फरवरी) के दौरान पहली बार हीटवेव का संकेत है। आईएमडी के अनुसार, 1901 में तापमान का रिकॉर्ड रखने की शुरुआत हुई थी। उसके बाद से फरवरी 2025 को सबसे गर्म फरवरी के रूप में दर्ज किया गया। और यह सिर्फ दिन के तापमान की बात नहीं है, रात के तापमान में भी वृद्धि हो रही है। मार्च की शुरुआत से ही कई जगहों पर भीषण गर्मी पड़ रही है।
गर्म होती दुनिया के लिए भारत कितना तैयार
हम नहीं जानते कि अप्रैल कितना भीषण गर्म होगा, लेकिन अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर ध्यान देने का समय है कि गर्म होती दुनिया के लिए भारत कितना तैयार है? दुनिया गर्म हो रही है। जलवायु परिवर्तन से हालात और भी बदतर हो रहे हैं। भारत आर्थिक दृष्टि से बेहद असमानताओं वाला देश है। कुछ लोग दूसरों की तुलना में अधिक असुरक्षित हैं, क्योंकि वे जहां रहते हैं, जिस तरह से काम करते हैं और उनकी समग्र स्वास्थ्य स्थिति अलग-अलग है। दिन और रात, दोनों समय उच्च तापमान के संपर्क में लंबे समय तक रहने से न केवल गर्मी का तनाव बढ़ सकता है, मृत्यु दर बढ़ सकती है और कृषि उत्पादकता कम हो सकती है, बल्कि यह व्यापक अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है और संभावित रूप से लाखों नौकरियों को नष्ट कर सकता है।
कामकाजी आबादी विशेष रूप से असुरक्षित
गर्मी के मामले में भारत की कामकाजी आबादी विशेष रूप से असुरक्षित है। जरा किसानों, निर्माण मजदूरों और रेहड़ी-पटरी वालों, खाद्य वितरण करने वाले मजदूरों और अन्य लोगों के बारे में सोचिए, जो लंबे समय तक चिलचिलाती धूप में काम करते रहते हैं और जो एयर कंडीशनर का खर्च नहीं उठा सकते। गर्मी से एक बड़े वर्ग के प्रभावित होने के बावजूद, देश में अत्यधिक गर्मी कोई राजनीतिक/चुनावी मुद्दा नहीं है। दिल्ली स्थित सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव (एसएफसी) की नई रिपोर्ट में नौ शहरों में दीर्घकालिक ताप जोखिम न्यूनीकरण उपायों के कार्यान्वयन का आकलन करके +1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के तहत अनुमानित चरम गर्मी के मद्देनजर भारत की तैयारियों का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन में बंगलूरू, फरीदाबाद, ग्वालियर, कोटा, लुधियाना, मेरठ, मुंबई, नई दिल्ली और सूरत को शामिल किया गया, जो संस्थागत और आर्थिक संदर्भों की विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं और वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की शहरी आबादी के 11 प्रतिशत से अधिक लोग इन शहरों में रहते हैं। अध्ययन के दौरान स्वास्थ्य आपदा प्रबंधन, श्रम, योजना एवं बागवानी सहित विभिन्न विभागों के 88 सरकारी अधिकारियों से साक्षात्कार लिया गया है।
गर्मी से निपटने की नीतियों का पहला आकलन
रिपोर्ट के लेखकों ने महत्वपूर्ण जानकारी दी है, जिस पर नीति निर्माताओं को ध्यान देना चाहिए। यह भारत के कई शहरों में अत्यधिक गर्मी से निपटने की नीतियों के क्रियान्वयन का पहला आकलन है। अहमदाबाद नगर निगम ने भारत की पहली हीट एक्शन प्लान (एचएपी) 2013 में बनाई थी, जब 2010 में शहर में घातक लू से 1,300 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। तब से, कई भारतीय शहरों में एचएपी लागू हो चुका है, जिससे कई लोगों की जान बची है। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक की कार्रवाई अल्पकालिक प्रतिक्रिया उपायों की ओर झुकी हुई है, जिनका उद्देश्य गर्मी से संबंधित मृत्यु दर और बीमारी को रोकने के लिए हीटवेव से ठीक पहले और उसके दौरान कार्रवाई करना है, न कि कोई दीर्घकालिक उपाय। रिपोर्ट में शामिल नौ शहरों में से कम से कम सात ने हीट रिस्पॉन्सिव उपायों का इस्तेमाल किया, जैसे जागरूकता अभियान, पानी और ओआरएस के जरिये हाइड्रेशन स्तर में वृद्धि, लू से पीड़ित रोगियों के उपचार के लिए अस्पताल के वार्डों का पुनः उपयोग, कुछ छाया, पानी और शीतलता के उपायों के साथ अस्थायी शीतलन केंद्र बनाना, और श्रमिकों के लिए कार्य समय में बदलाव करना। ये जरूरी और स्वागत योग्य कदम थे, जिसने कई मौतों को रोका और लोगों को राहत पहुंचाई है, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं।
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जिस चीज की कमी है, वह है दीर्घकालिक उपाय, जैसे कि काम के खोए हुए घंटों के लिए बीमा, जो बहुत जरूरी है, क्योंकि गर्मी के कारण उत्पादकता कम हो जाती है; बिजली ग्रिड में सुधार, जो बढ़ती बिजली की मांग को पूरा कर सके; तथा सबसे कमजोर लोगों के लिए शीतलता की सुविधा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के सर्वाधिक गर्म शहरों में एचएपी कार्यान्वयन के लिए लक्षित क्षमता निर्माण कार्यक्रम तैयार करना चाहिए। यानी देश के दस सर्वाधिक गर्म शहरों में शहर/जिला स्तर पर विभागीय कार्यवाहियों के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार लोगों के बीच सतत, बहुवार्षिक क्षमता-निर्माण प्रयास करना चाहिए। इससे भारत की गर्मी से निपटने की क्षमता में तेजी से सुधार हो सकता है। रिपोर्ट में जिला स्तर पर प्रशिक्षित आपदा प्रबंधन सहायक कर्मचारियों की क्षमता निर्माण करने का भी सुझाव दिया गया है। जलवायु के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील जिलों में स्थायी और वित्तपोषित विशेषज्ञ पदों का सृजन किया जाना चाहिए, जिन्हें दीर्घकालिक जोखिम शमन के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार..
एक मुख्य सुझाव अत्यधिक लक्षित सक्रिय शीतलन कार्यक्रम का निर्माण है। तापमान में तेजी से वृद्धि और दीर्घकालिक ताप सहन करने की क्षमता में अंतर बताता है कि जोखिम में रहने वाली शहरी आबादी अपने जीवन और आय की रक्षा के लिए एसी का रुख करेगी। रिपोर्ट कहती है कि राज्य और राष्ट्रीय सरकारों को सब्सिडी या बड़े पैमाने पर खरीद कार्यक्रम शुरू करने चाहिए, जिससे ऐसे परिवार ऊर्जा कुशल एसी खरीद सकें। जीवन, आजीविका, देश की आकांक्षाएं और भविष्य दांव पर लगा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक गर्मी के कारण भारत के काम के घंटों में 5.8 प्रतिशत तक कमी आ सकती है, जो 3.4 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है। कम वेतन वाले असंगठित श्रमिकों को लंबे समय तक गर्मी में रहकर काम करने कारण वेतन में कमी और स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, जिससे उनके गरीबी के जाल में फंसने की आशंका बढ़ जाती है।
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