नाइजीरिया और केन्या में एचआईवी दवाओं की कमी का खतरा

नाइजीरिया और केन्या में एचआईवी दवाओं की कमी का खतरा

वेब-डेस्क :- संयुक्त राष्ट्र विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में चेतावनी दी है कि अमेरिका द्वारा विदेशी सहायता रोकने के फैसले के बाद आठ देशों में एचआईवी की दवाओं की भारी कमी हो सकती है। इनमें नाइजीरिया, केन्या और लेसोथो समेत छह अफ्रीकी देश शामिल हैं।

ट्रम्प प्रशासन की नीतियों का असर:- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जनवरी 2025 में अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में सरकारी खर्च की समीक्षा के तहत विदेशी सहायता पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। इस निर्णय के परिणामस्वरूप, अमेरिका की सहायता से चल रहे वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

डब्ल्यूएचओ प्रमुख डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयेसस ने चेतावनी दी है कि इस सहायता में कटौती से पिछले 20 वर्षों की प्रगति पर पानी फिर सकता है। उन्होंने कहा, “एचआईवी कार्यक्रमों में व्यवधान के कारण 10 मिलियन से अधिक नए मामले सामने आ सकते हैं और तीन मिलियन से अधिक लोगों की जान जा सकती है।

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यूएसएआईडी और पेपफार पर संकट:- अमेरिका की एड्स राहत योजना, जिसे पेपफार (PEPFAR) कहा जाता है, ने 2003 से अब तक 26 मिलियन से अधिक लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल (ARV) दवाएं प्रदान की हैं। यह योजना यूएसएआईडी (USAID) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर निर्भर है।

हालांकि, फरवरी 2025 में अमेरिका ने पेपफार को छूट दी थी, फिर भी विदेशी सहायता कार्यक्रमों के खत्म होने से रसद आपूर्ति और दवा वितरण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। डॉ. टेड्रोस ने कहा, “इससे 50 से अधिक देशों में एचआईवी उपचार, परीक्षण और रोकथाम से संबंधित सेवाएं बाधित हो गई हैं।

सबसे ज्यादा प्रभावित देश :- डब्ल्यूएचओ ने कहा कि आने वाले महीनों में नाइजीरिया, केन्या, लेसोथो, दक्षिण सूडान, बुर्किना फासो और माली सहित अफ्रीकी देशों में एआरवी दवाएं समाप्त हो सकती हैं। इसके अलावा हैती और यूक्रेन भी इस संकट का सामना कर रहे हैं।

नाइजीरिया लगभग 2 मिलियन लोग एचआईवी संक्रमित हैं, जिनमें से अधिकांश सहायता-वित्तपोषित दवाओं पर निर्भर हैं।

केन्या 1.4 मिलियन से अधिक लोग एचआईवी से संक्रमित हैं, जो दुनिया में सातवीं सबसे बड़ी संख्या है।

 

अमेरिका की भूमिका और वैश्विक चिंता:-  अमेरिका दशकों से वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का सबसे बड़ा समर्थक रहा है। लेकिन ट्रम्प प्रशासन की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के चलते विदेशी सहायता में कमी से वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसियों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। डॉ. टेड्रोस ने अमेरिका से वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में अपने समर्थन पर पुनर्विचार करने की अपील की है। उन्होंने कहा, “यह न केवल दुनिया भर में लोगों की जान बचाता है, बल्कि अमेरिका को भी महामारी से सुरक्षित रखता है।

उप-सहारा अफ्रीका में खतरा बढ़ा डब्ल्यूएचओ के अनुसार, उप-सहारा अफ्रीका में एचआईवी से पीड़ित 25 मिलियन लोग हैं, जो वैश्विक एचआईवी संक्रमितों का दो-तिहाई हिस्सा हैं। इस क्षेत्र में दवा आपूर्ति बाधित होने से स्वास्थ्य संकट गहरा सकता है।

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