वेब-डेस्क :- वायु प्रदूषण और इसके कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में लंबे समय से चर्चा होती रही है। जिस तरह से दुनियाभर की हवा प्रभावित होती जा रही है, हवा में प्रदूषित सूक्ष्म कणों की मात्रा बढ़ती जा रही है, इसने स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता बढ़ा दी है। कई अध्ययन इस बात पर लगातार जोर दे रहे हैं कि हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) में अत्यधिक हानिकारक और प्रतिक्रियाशील कणों की मात्रा पहले के अनुमानों से काफी अधिक है। इस तरह की हवा में सांस लेना हमारे पूरे शरीर को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाला हो सकता है।
हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया है कि वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव हमारी कल्पना से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं। वायु प्रदूषण के कारण कई ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम भी बढ़ता जा रहा है जिससे आने वाली कई पीढ़ियां प्रभावित हो सकती हैं।
मस्तिष्क पर गंभीर असर, असमय हो सकती है मौत
स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट से पता चलता है कि पार्टिकुलेट मैटर (हवा में मौजूद सूक्ष्म कण) के अत्यधिक संपर्क के कारण होने वाली बीमारियों के चलते हर साल विश्वभर में करीब 60 लाख लोगों की असमय मौत हो जाती है।
शोधकर्ताओं ने अलर्ट किया है पार्टिकुलेट मैटर में पहले के अनुमान से काफी अधिक मात्रा में हानिकारक कण हो सकते हैं, जिसका मतलब है कि इसका हमारी सेहत पर और भी गंभीर रूप से असर हो सकता है।
वायु प्रदूषण के संपर्क में रहना बच्चों की सेहत को प्रभावित करता है, इससे मस्तिष्क पर गंभीर असर हो रहा है। जिन बच्चों का शुरुआती समय प्रदूषण के संपर्क में बीतता है उनमें भविष्य में कई प्रकार की गंभीर समस्याओं का जोखिम हो सकता है।
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दिमाग पर नकारात्मक असर
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, वायु प्रदूषण आपकी याददाश्त, भावनाएं नियंत्रित करने और निर्णय लेने की क्षमता पर नकारात्मक असर डालता है। वायु प्रदूषण के बीच अगर बचपन गुजरा है तो इससे दिमागी विकास प्रभावित हो सकता है।
जीवन के शुरुआती दो साल वह समय होता है जब बच्चे सोचने, समझने, महसूस करने और प्रतिक्रिया देने की मूलभूत क्षमताएं विकसित करते हैं। अगर इस दौरान उनका प्रदूषित हवा से संपर्क अधिक रहता है तो न सिर्फ मस्तिष्क का विकास प्रभावित होता है साथ ही भविष्य में मस्तिष्क से संबंधित कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ सकता है।
भविष्य में बढ़ता है बीमारियों का जोखिम
‘एनवायरनमेंट इंटरनेशनल’ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि यदि बच्चे जन्म से लेकर 12 वर्ष की आयु तक वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में आते हैं तो उनके मस्तिष्क के भीतर स्थित महत्वपूर्ण हिस्सों के बीच संचार संयोजकता यानी फंक्शनल कनेक्टिविटी बाधित हो सकती है। यह कनेक्टिविटी वह तंत्र है, जो मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को आपस में जोड़कर सोचने- समझने, भावनाएं व्यक्त करने और निर्णय लेने में मदद करती है।
पीएम2.5, पीएम10 जैसे सूक्ष्म कण, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को बच्चों के दिमागी विकास के लिए सबसे खतरनाक पाया गया। भविष्य में इससे डिमेंशिया जैसी बीमारियों का जोखिम भी बढ़ जाता है, जिसका असर कई पीढ़ियों पर पड़ता है।
भारत के लगभग सारे शहर, सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल
बार्सिलोना इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि कई देशों की तुलना में भारत की स्थिति काफी चिंताजनक है। शोध में नीदरलैंड के बच्चों को शामिल किया गया, यहां वायु प्रदूषण भारत की तुलना में बेहद कम है। यहां बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमता बेहतर देखी गई।
वायु गुणवत्ता पर नजर रखने वाले वैश्विक संगठन आईक्यू एयर की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत 2024 में दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित देश रहा। यहां पीएम2.5 का वार्षिक औसत 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 10 गुना ज्यादा है। भारत के 74 शहर दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं।
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